क्या आपने कभी ये सोचा की आखिर क्यों देवी रुक्मणि का मंदिर भगवान श्री कृष्ण से दूर है ?
आखिर क्यों भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी विवाह के बाद भी ज्यादा दिनों तक साथ नहीं रह पाए?
आखिर क्यों ऋषि दुर्बासा ने रुक्मणि को श्राप दिया ?
भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी ने ऐसी क्या गलती की जिसकी वजह से दोनों को 12 साल के लिए अलग रहना पड़ा ? आज हम आपको इन सभी सवालो के जवाब देंगे।
एक पौराणिक कहानी के अनुसार ऋषि दुर्वासा भगवान श्रीकृष्ण के कुलगुरु हुआ करते थे। श्रीकृष्ण ऋषि दुर्बासा का बोहोत आदर और सम्मान करते थे।
एक दिन विवाह के बाद भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी को लेकर अपने कुलगुरु ऋषि दुर्बासा का आर्शीवाद लेने उनके आश्रम पहुंचे।
ऋषि दुर्वासा का आश्रम श्री कृष्ण की नगरी द्वारका से कुछ दूरी पर स्थित है।
आश्रम पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी ने ऋषि दुर्वासा का आर्शीवाद लिया और उन्हे महल में आकर भोजन ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया।
ऋषि दुर्वासा ने इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया लेकिन श्री कृष्ण के सामने एक शर्त भी रख दी।
शर्त यह थी की जिस रथ से भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी आए हैं उस रथ से वे महल नहीं जाएंगे। वे तभी महल में जाएंगे जब उनके लिए नया रथ मंगवाया जाएगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने पहले रुक्मिणी की तरफ देखा और फिर ऋषि दुर्वासा के सामने हाथ जोड़कर कहा कि गुरुवर जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा, मै अभी आपके लिए एक नया रथ मंगवाता हूं।
पर भगवान किसी वजह से नए रथ का प्रबंध नहीं कर पाए और इस लिए उन्होने अपने रथ के दोनों घोड़ों को निकाल दिया और उनकी जगह श्रीकृष्ण और रुक्मणी स्वयं रथ में जुत गए।
ऐसा करने के बाद दोनों ने ऋषि दुर्वासा से रथ पर आने की प्रार्थना की जिसे उन्होने मान लिया।
इसके बाद ऋषि दुर्वासा रथ पर चढ़ गए और भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी दोनों मिलकर रथ को खींचने लगे।
कुछ दूरी तय करने के बाद रुक्मिणी को प्यास लगने लगी और उन्होने भगवन कृष्ण को बताया लेकिन भगवान ने रुक्मिणी को धैर्य रखने के लिए कहा और बोले की कुछ दूर और रथ को खींच लो इसके बाद हम महल पहुंच जाएंगे।
लेकिन रुक्मिणी का गला सूखने लगा और वे परेशान होने लगीं। तब भगवान कृष्ण से भी नहीं रहा गया और उन्होने रुक्मिणी की प्यास बुझाने के लिए जमीन पर अपने पैर का अंगूठा मारा, जिससे वहाँ गंगाजल की धारा बहने लगी।
उस पानी से रुक्मणी ने अपनी प्यास शांत की और भगवन श्री कृष्ण को भी थोड़ा पानी पीने को कहा। भगवन श्रीकृष्ण ने भी रुक्मणि की बात मानते हुए अपनी प्यास बुझाई।
अब रथ पर बैठे हुआ ऋषि दुर्वासा ये सब देख रहे थे और वो इस बात से बोहोत नाराज हो गए की किसी ने उन्हें पानी के लिए नहीं पूछा।
अब ऋषि दुर्वासा बोहोत गुस्से में आ गए और बोले की तुम दोनों ने अपनी प्यास बुझा ली लेकिन मुझसे पूछा भी नहीं।
तब क्रोध में आकर ऋषि दुर्वासा ने भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी को 12 साल तक अलग रहने का श्राप दिया।
इस श्राप के कारण भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी को अलग होना पड़ा।
पर हार न मानते हुए और श्राप से मुक्त होने के लिए रुक्मिणी ने भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की जिसके बाद वे श्राप से मुक्त हो गयी जिसमे उन्हे 12 साल लगे। और यही कारण है कि देवी रुक्मणि का मंदिर भगवन कृष्ण के मंदिर से दूर है।
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