नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत के गुजरात राज्य में द्ववारका नगरी से 17 KM दूर स्थित है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से भी एक है, जो भगवान शिव के सबसे पवित्र निवास स्थानों में से एक माने जाते हैं।
कहानियों के अनुसार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्व-उत्पन्न ज्योतिर्लिंग है।
इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग इसलिए पड़ा क्योकि कि भगवान शिव एक दानव को मरने करने के लिए साँप के रूप में प्रकट हुए थे। “नागेश्वर” संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ साँप होता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है और पूरे देश से हजारों भक्तों को आकर्षित करता है। महाशिवरात्रि के त्योहार के दौरान इस मंदिर में बोहोत भीड़ होती है।
इन सबके अलावा मंदिर अपने प्राकृतिक गर्म पानी के झरनों के लिए भी बोहोत प्रसिद्ध है, और ऐसा माना जाता है कि यह पानी औषधीय गुणों से भरा हुआ है जिसमे आपको एक बार ज़रूर डुबकी लगानी चाहिए।
लोगो का यह भी माना है कि इन झरनों में नहाने से बोहोत सारी बीमारियों का इलाज होता है और आत्मा को शुद्धि मिलती है।
जब आप इस मंदिर में जाएंगे तो देखेंगे की मंदिर का मुख्य हॉल अलग-अलग रंगीन चित्रों से सजा हुआ है, जिसमें भगवान शिव के कई अलग- अलग रूपों और अवतारों का वर्णन किया गया है।
मंदिर में नटराज के रूप में भगवान शिव की एक बड़ी मूर्ति भी है, जो पर्यटकों के बीच एक लोकप्रिय आकर्षण है। मूर्ति काले पत्थर से बनाई गई है और इसकी ऊँचाई 25 फीट से अधिक है।
सुप्रिया और दारूका की कहानी
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी है, जो शिव भक्त सुप्रिया और एक राक्षस दारूका की कहानी है।
सुप्रिया और दारूका की कहानी अक्सर भक्ति की शक्ति और भगवान शिव की शक्ति को जोर देने के लिए बताई जाती है।
कहानी के अनुसार, एक सुप्रिया नाम के ऋषि थे जो भगवान शिव के बोहोत बड़े भक्त थे। वह अपना पूरा दिन भगवन शिव की पूजा और ध्यान में बिताते थे।
वही एक दारू नाम का राक्षस भी था जो सुप्रिया से चिढ़ता था क्योकि वह पूरा दिन शिव की पूजा करता थे।
दारूका सुप्रिया को परेशान करने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था। वह दिन भर यही सोचता था कि इसे कैसे परेशान करुँ।
एक दिन जब सुप्रिया ध्यान में खोया हुआ था, तब राक्षस दारूका ने उस पर हमला कर दिया और उसे उठाकर अपने साथ लेगया और बंधी बना लिया।
वहाँ राक्षस की कैद में रहने के बाद भी सुप्रिया ने शिव भक्ति नहीं छोड़ी और अपनी साधना को जारी रखा।
जब दारुका को यह बात पता चली तो वह गुस्से से आग बबूला हो गया और उसने गुस्से में सुप्रिया को मरने का फैसला कर लिया।
सुप्रिया जानते थे कि केवल भगवान शिव ही उन्हें इस राक्षस से बचा सकते हैं।
वह अपने पूरे मन और आत्मा से भगवान शिव की प्रार्थना करते रहे, और भगवान शिव उनकी भक्ति से खुश होकर एक नाग के रूप में उनके सामने प्रकट हो गए।
फिर भगवान शिव ने दारूका से युद्ध किया और अंत में उस राक्षस को मार डाला।
जहां भगवन शिव और राक्षस की लड़ाई हुई थी उस स्थान पर एक शिवलिंग भूमि से बहार आया जिसे लोगो ने नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम दिया। और इसलिए इसे स्वयं प्रकट शिवलिंग भी कहा जाता है।